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रुकी-रुकी-सी / फ़िराक़ गोरखपुरी रुकी-रुकी सी शबे-मर्ग खत्म पर आई. वो पौ फटी,वो नई ज़िन्दगी नज़र आई. ये मोड़ वो हैं कि परछाइयाँ देगी न साथ. मुसाफ़िरों से कहो, उसकी रहगुज़र ...